manipur ka kand
Manipur हम सर्मिन्दा है मणिपुर की पूरी कहानी ?
दोस्तों किसी भी इंसान के लिए सबसे दुख की बात यह नहीं होती की वह गरीब है वह भूख की तकलीफ को भी सह जाता है उसे इस बात का भी मलाल नहीं होता की वो किस घर में पैदा हुआ वो कितना पढ़ पाया मगर दुनिया में कोई भी इंसान ये नहीं सह सकता की कोई उसकी इज्जत तार-तार करते हजारों लोगों के सामने उसकी आबरू लें ली जाए कोई उसकी आत्मा और उसके शरीर को शर्मसार कर दे हालांत कैसे भी हो तकलीफ कितनी भी बड़ी क्यों ना हो मगर गरीब से गरीब आदमी कभी अपनी इज्जत के साथ समझौता नहीं करता
मगर इसी समाज में जब दो औरतें को हजारों की भीड़ के सामने कपड़े उतार कर घुमाया जाता है उनसे ज्याती की जाति है उनकी इज्जत लूटी जाति है और वो भीड़ के सामने हाथ जोड़कर खुद को छोड़ने की अपील करती रहती है और कोई नहीं सुनता तो इससे ज्यादा दुख और तकलीफ की बात और क्या हो शक्ति है
एक देश और समाज के नाते हमारे लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो शक्ति है मणिपुर से आए हमारी बहनों के वीडियो ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है हम 3 महीने से सुन रहे थे की मणिपुर में हिंसा हो रही है लोग मारे जा रहे हैं उनके घर जलाया जा रहे हैं मगर देश की मीडिया और हुक्मरानों ने उसे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया उनके कान पर कही जू तक नहीं रेंगी।
19 जुलाई का वीडियो
मगर 19 जुलाई को जब यह वीडियो सामने आया तो उसने पूरे देश को सन कर दिया हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया की हमारे ही देश में हमारे ही लोगों के साथ ये सब हो रहा है और हम कुछ नहीं कर पे आखिर कौन है इस वारदात का जिम्मेदार कौन है इस वैश्य हरकत के पीछे आखिर क्यों सरकारें और पुलिस इतनी आपहीत बनी रही की अपनी ही बेटियों को नहीं बच्चा पाई और देश का मीडिया इतना सोया कैसे हो सकता है की वो पाकिस्तान से आई सीमा हैदर की तो साड़ी कुंडली खंगाल डालें मगर 4 मई को हुई इस खौफनाक घटना का उसे तब तक पता नहीं चला जब तक की उसका वीडियो सामने नहीं आया
तो आज हम मणिपुर की इस घटना पर बात करेंगे साथ ही ये समझना की कोशिश करेंगे की आखिर क्यों पिछले 3 महीने से मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही हिंसा के पीछे आखिर वजह क्या है आखिर क्यों सरकारें इस हिंसा पर काबू नहीं कर पा रही हैं कोशिश करेंगे की मणिपुर से जुड़े एक-एक सवाल का हम जवाब दें
पिछले 3 महीने से फैली मणिपुर हिंसा की बात करूं और हिंसा को रोक अपने में राज्य और केंद्र सरकार के निकम्मेपन का जिक्र करूं मैं चाहूंगा की आपको मणिपुर की प्रॉब्लम से जुड़ी कुछ बेसिक बातें बता दू ताकि आप बेहतर तरीके से समझ पाएं
मनीपुर हिंसा की वजह ?
तो बात ये है की मणिपुर स्टेट में मुख्य तोर पर तीन मुख्य जाति हैं एक तरफ मैं तो ही है जो हिंदू है जिनकी राज्य में आबादी 55 से 60% जिन्हें आजादी के बाद अनुसूचित जाति का दर्ज दिया गया मैं तो ये हिंदू मुख्य तोर पर मणिपुर के 10 फ़ीसदी मैदानी इलाकों में रहते हैं दूसरी तरफ कुकी और लोग जनजाति है क्योंकि जनजाति इसी समाज से आई है ये लोग राज्य की आबादी के 20 फ़ीसदी है मगर मणिपुर के 90 फ़ीसदी पहाड़ी इलाकों में यही रहते हैं
मैं तेरी जाति की शिकायत यह थी की लैंड रिफॉर्म एक्ट की वजह से यह लोग पहाड़ी इलाकों में जमीन नहीं खरीद सकते जबकि राज्य में सबसे ज्यादा आबादी इनकी इन लोगों की मांग थी की इन्हें भी जनजाति का दर्ज दिया जाए ताकि ये लोग भी पहाड़ों पर जमीन खरीद सके इसी को लेकर मैं इतनी ड्राइव यूनियन पिछले कई सालों से मेरी समुदाय को आदिवासी दर्ज देने की मांग कर रही है
मगर कुकी बाकी जनजातीय को ये बात कभी पसंद नहीं आई 19 अप्रैल को मामला जब हाय कोर्ट पहुंच तो मणिपुर हाय कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा की वो 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजाति मामलों के मंत्रालय की सिफारिश पेस करें इस सिफारिश में मैत्री समुदाय को जनजाति का दर्ज देने के लिए कहा गया जिसके बाद कुकीज समाज की तरफ से इसका विरोध किया गया हाय कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई
क्योंकि समाज का कहना था की मैं तो ही समाज का पहले से ही नौकरियां में दबदबा है राज्य में 60 में से 40 विधायक भी मैत्री समाज से आते हैं ऐसे में अगर उन्हें जनजाति का दर्ज दिया गया तो ये लोग पहाड़ों पर जमीन खरीदना शुरू कर देगी और कुकी समाज हसन पर चला जाएगा
इसी को लेकर 3 मैं को एक रैली निकाल गई और देखते ही देखते रैली हिंसक हो गई क्योंकि लोगों ने मेथी समाज के लोगों पर हमला किया जिसके बाद मैं ऐसे ही लोगों ने भी क्योंकि लोगों को निशाना बनाना शुरू किया चों में आज लगी 2000 से ज्यादा कुकी लोगों के घरों को निशाना बनाया गया वही काकी इलाकों में रहने वाले महती लोगों पर भी हमले हुए लोग रातों रात अपने घर को छोड़ने को मजबूर हो गए
रात के अंधेरे में गर्भवती महिलाओं को घर छोड़कर भगाना पड़ा कई बच्चे पानी में बह गए पिछले 80 दोनों से फैली इस हिंसा में अब तक 150 लोग अपनी जान गाव चुके हैं 5000 से ज्यादा आगजनी की घटनाएं हुई हैं 7000 लोग गिरफ्तार किया गए हैं हिंसा की 6000 वारदातें हुई हैं और 60000 लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर है
देखते ही देखते जाति की ये लड़ाई ने धार्मिक रंग भी ले लिया हमला चर्च और मंदिरों पर भी हुआ देखते ही देखते दोनों जातियां में इतना गुस्सा भर गया की कोई भी कुकी इलाके में रहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है और ना ही कुकी इलाके में मेहंदी जा पा रहे हैं क्योंकि और मेथी दोनों का सरकार और पुलिस से भरोसा उठ गया है उन्हें लग रहा है की उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी
और हुआ यह की लोग दूसरे की हिंसा से बचाने के लिए खुद हिंसा करने लगे और हालात बिगड़ते बिगडते यहां तक आ गए की मणिपुर में इन्ही हालात को देखकर 3 महीने से लगातार आवाज़ उठाती रही हैं
सरकार अपना काम क्यों नहीं कर रही है ?
लोग सवाल करें की स्टेट और सेंटर में दोनों जगह बीजेपी की सरकार है फिर भी कोई एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा देशभर का मीडिया उस पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा बड़े लोग क्यों इस पर कुछ नहीं बोल रहे हैं आखिर हर दिन लोगों को हिंसा करने के लिए क्यों छोड़ दिया जा रहा है
ये भी सवाल पूछे जा रहे हैं की अगर मानहानि की एक मामले में राहुल गांधी की सांसद सदस्यता चली जाति है ये गलत बयान के लिए अदालत उनकी जिम्मेदारी ते करती है तो मणिपुर की इस हिंसा के लिए राज्य के मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह की जिम्मेदारी क्यों नहीं मानी जा रही है क्यों उनसे इस्तीफा नहीं मांगा जा रहा है अगर मुख्यमंत्री हालात नहीं संभल का रहे तो राज्य में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा दिया जाता मगर इन तीन मीना में इनमें से किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं मिला
19 जुलाई को कुछ ऐसा हुवा जो नहीं होना चाहिए ?
लेकिन 19 जुलाई को एक ऐसा वीडियो सामने आया जिसने सबको बोलने पर मजबूर कर दिया यह वीडियो 19 जुलाई को जरूर सामने आया मगर यह घटना 4 मई की बताई जा रही है इंडियन एक्सप्रेस में पब्लिश्ड रिपोर्ट में घटना से जुड़ी डिटेल दी गई है घटना का पूरा ब्यूरो सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे फिर भी पीड़ित महिला ने बताया की थंबल जिले में 800 से 1000 लोगों ने कुकी लोगों के घरों पर हमला किया इस भीड़ से बचाने के लिए लोग अपने घरों से भाग रहे थे इसी भीड़ में दो महिलाएं और युवा महिला अपने पिता और भाई के साथ जंगल की तरफ भाग जाते हैं
पुलिस जैसे तैसे इन्हें बचाने में कामयाब हो जाति है मगर तभी भीड़ पुलिस पर हमला करके इन लोगों को पुलिस की कस्टडी से चुडा लेती है लड़की के पिता जब हमले का विरोध करते हैं तो उन्हें वही गली मार दी जाति है तीन महिलाओं के कपड़े उतार कर चलने के लिए बोला जाता है उनमें से 20 साल की एक लड़की के साथ गलत कम किया जाता है उसका भाई जब विरोध करता है तो उसके भाई की भी हत्या कर दी जाति है
पुलिस प्रशासन की लापरवाही
सच में ये सब सुनकर सिर्फ शर्म से झुक जाता है मगर उससे भी ज्यादा शर्म की बात यह है की यह घटना 4 मई की है जबकि दो हफ्ते बाद 18 मई को कँगपोकपि जिले में जीरो फ आई आर दर्ज करवाई गई और ढाई महीने के बाद इस मामले में पहले गिरफ्तारी तब हुई जब घटना का वीडियो वायरल हुआ मतलब जो घटना में दो लोगों की मौत हो जाति है एक लड़की की रेप होता है 3 महिलाओं को बिना कपड़ों के घुमाया जाता है उसे मामले में दो महीने बाद सिर्फ एक गिरफ्तारी होती है
जी हां सिर्फ एक वो भी तब जब उसे घटना का वीडियो वायरल हो जाता है इससे आप समझ सकते हैं की मणिपुर में पुलिस प्रशासन कैसे कम कर रही है इसके बावजूद मणिपुर के सी ऍम का रवैया देखिए जब एक टीवी चैनल ने उनसे इस वीडियो के बारे में पूछा तो वो कहने लगे की अरे आपके हाथ एक वीडियो लग गया तो आप इस बारे में पूछ रही हैं ऐसे तो सैकड़ो मामले मतलब सैकड़ो मामले हुए हैं तो क्या ये शाबाशी की बात हैरानी की बात ये है की हर दर्जे तक खुद को नकारा और इन सेंसेटिव दिखाने के बावजूद अब तक मणिपुर के सी ऍम की बर्खास्त क्यों नहीं हुई।
इतनी हिंसा के बावजूद राज्य के सी ऍम अपने पद पर बने रहना और बीजेपी का उन्हें इस पद पर बनाए रखना लोगों की भावनाओं का सरासर अपमान है जो गुजरात कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बीजेपी रातों रात सी ऍम बदल देती है और कोई शू भी नहीं करता तो मणिपुर में आखिर ऐसी क्या मजबूरी हो गई की अब तक ऐ काम नहीं कर रही है
मज़बूरी जो भी हो मगर वीरेंद्र सिंह का एक पल भी सी ऍम पद पर रहना पीड़ितों की भावनाओं का मजाक है दोस्तों भीड़ कितनी भी हिंसाक क्यों ना हो कितनी भी अराजक क्यों न हो लेकिन अगर सरकार चाहे तो ऐसा हो ही नहीं सकता की उसे हिंसक भीड़ पर काबू ना पाया जा सके
कश्मीर का उदाहरण देख लो आप
कश्मीर का उदाहरण हमारे सामने है मणिपुर मे तो स्थानी जातिया एक दूसरे के खिलाफ है कश्मीर में तो सुरक्षा एजेंसियां ही भीड़ के निशाने पर थी हिंसक भीड़ के बीच छुपी आतंकियों का पता लगाना भी मुश्किल था कौन किस कोनी से हमला कर दे ये पता लगाना भी मुश्किल था ऐसे माहौल के बावजूद अगर भारत सरकार कश्मीर से धारा 370 हटाती है वहां हिंसा भी नहीं होने देती और कश्मीर धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है तो मणिपुर में हम वो काम क्यों नहीं कर का रहे हैं
जो पुलिस और अर्धसैनिक बल कश्मीर जैसी जगह में कारगर हो सकते हैं वो मणिपुर में कैसे फेल हो गए इससे साफ लगता है की इस हिंसा को रोकने की शायद ईमानदार कोशिश नहीं की गई शायद अंजेसियो ने अपना कम ईमानदारी से नहीं किया वरना ऐसे कैसे हो सकता है की हिंसक भीड़ पुलिस के कब्जे से लड़कियों को छुड़ाकर उनके साथ जाति कर जाए उनकी इज्जत तार-तार कर दे लोगों के कत्ल हो जाये और पुलिस कुछ भी ना कर पाई हैरानी ये भी है की 3 महीने से मणिपुर जल रहा मगर नेशनल मीडिया ने भी उसे तरफ ध्यान नहीं दिया मणिपुर की हिंसा पर वैसे ही वैसे और डिबेट्स क्यों नहीं किया गए
जैसे राजनीति और सीमा हैदर जैसे मुद्दों पर होती हैं क्यों नहीं इस मामले पर नेताओं को कटघरे में खड़ा किया गया है आखिर क्यों अपने ही लोगों को अपने ही देश में अपने ही लोगों के खिलाफ लड़ने के लिए खुला छोड़ दिया गया और आखिर क्यों कुछ लोगों ने इस पर कभी बोलने की जरूरत नहीं समझी
ये सारे क्यों ही इस बात का जवाब है की आखिर मणिपुर वहां कैसे ए आ गया जहां आज ही आया है सच में मणिपुर हम सब शर्मिंदा हैं की हम तुम्हारे साथ वैसे नहीं खड़े हो पे जैसे होना चाहिए था मणिपुर हम इस बात के गुनहगार हैं की हमने तुम्हारी वैसी परवाह नहीं की जैसी करनी चाहिए थी और मणिपुर की बहनों हम सच में शर्मसार हैं जो तुम्हारे साथ हुआ वो हरगिज़ नहीं होना चाहिए था
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