maidan hindi film ajay devgan 2024

मैदान फ़िल्म का रिव्यु मैदान फ़िल्म की कहानी जान लीजिये की कैसी है फ़िल्म  ?

आपको बस एक बात से फर्क पड़ना चाहिए कि आपने मैदान की टिकट बुक करा ली या नहीं क्योंकि अगर नहीं कराई है तो तुरंत से पहले जाकर कराओ मैं आपको आज बता रहा हूं यह बात 10 साल बाद याद करिएगा कि मैदान बॉलीवुड के इतिहास की वन ऑफ़ द बेस्ट स्पोर्ट्स मूवी के तौर पर काउंट की जाएगी यह उसी लिस्ट में गिनी जाएगी जहां पर चक दे इंडिया और दंगल जैसी फिल्में हैं अब आप सोच लो कि फिल्म किस लेवल की बनाई गई है

मैं तो फिल्म देखने के बाद हैरान हो गया कि भाई भारत में कभी इतना बढ़िया फुटबॉल भी खेला गया है मैं तो बाय चंग घोट और सुनील क्षेत्री के आगे कभी बढ़ ही नहीं पाया लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1948 में जब भारत को आजाद हुए सिर्फ एक साल हुआ था तभी हमारी टीम ओलंपिक में क्वालीफाई कर गई थी और ओलंपिक में नंगे पैर खेला था हमने क्योंकि जूते के साथ खेलने की हमारी आदत नहीं थी

 

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जब वहां पर हमारी टीम के कप्तान से ये पूछा गया कि आप लोग नंगे पैर क्यों खेलते हो तो उन्होंने जवाब दिया कि असल में फुटबॉल तो हम लोग खेलते हैं जो जूते के साथ फुटबॉल खेल रहे हैं वो तो बूट बॉल है इंडियन टीम ने उस ओलंपिक में इतना इंप्रेस किया कि उस वक्त के इंग्लैंड के राजा किंग जॉर्ज सिक्स ने इंडियन टीम को बकिंघम पैलेस में बुलाया था और चेक किया था कि कहीं हमारे खिलाड़ियों के पैर में स्टील तो नहीं लगी है

बताओ इतना गौरवशाली इतिहास रहा है हमारी टीम का कि 1951 और 1962 में हमारी फुटबॉल टीम एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल लेकर आई  लेकिन ये गोल्ड मेडल किसकी वजह से मिले मैदान फिल्म उसी इंसान की कहानी है जिनको रहीम साहब भी कहा जाता है और उनकी कोचिंग पीरियड को इंडियन फुटबॉल की गोल्डन एज कहा जाता है मैदान में उनकी स्टोरी को इतना इंस्पायरिंग दिखाया गया है कि कायदे से संदीप महेश्वरी और विवेक बिंद्र जी को खुद अपनी जॉब छोड़ देनी चाहिए

 

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क्योंकि असल मोटिवेशन तो यही है अगर ये फिल्म में संडे के दिन देख लेता तो मुझे मंडे खराब ना लगता अजय देवगन सर ने पिछली फिल्म में डरा दिया था इस फिल्म में मोटिवेट कर दिया है मेरा दिमाग भी कंफ्यूज है कि अजय सर करना क्या चाहते हैं डरा जाए या मोटिवेट हुआ जाए और फिर अल्टीमेटली ये डिसाइड होता है कि जुबा केसरी कर ली जाए सॉरी फिल्म की कहानी जैसे हमने बताया रहीम साहब जिनकी जन्मभूमि हैदराबाद है लेकिन कर्मभूमि कोलकाता है

जो कि फुटबॉल कैपिटल ऑफ इंडिया थी और शायद अभी भी है रहीम साहब इंडिया की एक बेहतरीन टीम बनाना चाहते हैं क्योंकि उनके हिसाब से अगर हमें आजादी के बाद वर्ल्ड मैप पर कुछ एस्टेब्लिश कर सकता है तो वो है फुटबॉल और एक बढ़िया टीम बनाने के लिए वो सब कुछ दांव पर लगा देते हैं पूरी फिल्म आपको एक फील गुड वाला फैक्टर देगी कि किस तरह भारत के पास एक वक्त पर ऐसा कोच था जिसको फुटबॉल का चाणक्य भी कहा जा सकता है

 

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जिसने देश भर के कोने-कोने से बिना जाति और धर्म का भेदभाव करें एक ऐसी टीम बनाई जो कि वर्ल्ड क्लास थी और ये सब करने में उनके सामने कितनी अड़चनें आई थी जैसे फुटबॉल फेडरेशन और एक बहुत ही पावरफुल फुटबॉल जर्नलिस्ट रॉय चौधरी जिनका रोल गजराज राव ने किया है और पूरी फिल्म में ये लोग नहा धोकर रहीम साहब के पीछे पड़े तो फेडरेशन और ये जर्नलिस्ट चाहते हैं कि टीम में वही रहे जो उनकी मर्जी का है लेकिन रहीम साहब को कबीर खान की तरह ना स्टेट्स के नाम सुनाई देते हैं

और ना समझ में आते हैं उनको बस एक ही मुल्क का नाम सुनाई देता है इंडिया तो इन सबको पीछे छोड़कर किस तरह रहीम साहब एक बढ़िया टीम बनाते हैं और किस तरह ओलंपिक और एशियन गेम्स में भारत फुटबॉल में शाइन करता है यही फिल्म की कहानी है वैसे ये फिल्म बड़े मिया छोटी मिया इस फिल्म के साथ क्लैश कर रही है और क्लैश में कौन सी फिल्म की किस्मत चमकेगी किसी को पता ही नहीं होता किस्मत ऐसी चीज है ना कि जब चमक नहीं होगी वो तभी चमकेगी

 

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और किसके किस्मत में क्या लिखा होता है यह भी कौन ही बता पाया है कब हम अपने राइट पार्टनर से मिलेंगे कब हम अपना नया घर बना पाएंगे कब शादी कर पाएंगे कब तुम्हारी क्रश से तुम्हारी बात हो पाएगी

मैदान फिल्म की बात करते हैं अब देखो स्पोर्ट्स फिल्म बनाने के साथ दिक्कत ये होती है कि आपको ये पता है कि फिल्म का हीरो आखिर में जीतेगा ही जीतेगा ऐसे में दर्शकों को स्टोरी टेलिंग से बांध के रखना और आउटकम पता होने के बावजूद उनका माथा हिला देना एक फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है यह बात चकदे इंडिया में भी थी दंगल में भी थी और अब मैं कह सकता हूं कि ये मैदान में भी है

मैदान आपको लार्जर देन लाइफ एक्सपीरियंस देती है जो जो फुटबॉल फील्ड के सीन है वो आपको एकदम एज ऑफ द सीट रखते हैं खासकर इंडिया और साउथ कोरिया के बीच हुआ 1962 का एशियन गेम फाइनल जो आपको एकदम लाइव मैच वाली थ्रिल फील करा देता है कसम से फुटबॉल देखते हुए आखिरी बार मुझे इतना मजा 2010 के वर्ल्ड कप में आया था जब ऑक्टोपस पॉल भविष्यवाणी कर देता था

 

 

लेकिन फिल्म की कुछ दिक्कतें भी है वो भी यहां बता देता हूं जैसे ये फिल्म पिछले पांच सालों से बन रही थी इसलिए कहीं-कहीं आपको आउटडेटेड भी लग सकती है जिस फाइनल मैच का हमने जिक्र किया यानी इंडिया वर्सेस साउथ कोरिया 196 डू एशन गेम्स फाइनल उसमें कोच की एक स्पीच भी है जो कि जरूरी तो है लेकिन उतनी आइकॉनिक नहीं लगेगी जितनी शाहरुख खान की 70 मिनट वाली स्पीच थी चकदे में हां उसके बाद जो मैच दिखाया गया जहां पर इंडिया ने साउथ कोरिया को 2 एक से हराया था वो पूरी फिल्म की हाईलाइट है

आपने अगर जिंदगी में कभी फुटबॉल नहीं भी देखी होगी तो भी आपको समझ में आ जाएगा कि रहीम साहब ने फाइनल में क्या मास्टर स्ट्रोक चलकर टीम इंडिया को जिताया है वाह हां अगर आपके घर में कोई जेंज है खासकर जेंज लड़कियां तो उनको ये फिल्म दिखाने ना ले जाएं क्योंकि साउथ कोरिया के लड़कों को ये जनरेशन इतना पसंद करती है कि उनको हारते हुए देखकर उनके आंसू भी निकल सकते हैं

 

 

इसलिए ऐसी पापा की परियां फिल्म से दूर र आप घर बैठकर कोरियन ड्रामा ही देखें बाकी लोग पहली फुर्सत में निकल और फिल्म की टिकट बुक कराओ और जाकर देखो मजा ना आए तो पैसे वापस अंडरडॉग जीतते हैं तो खुशी तो होती है और मैदान ये फिल्म इस अंडरडॉग के जीतने की बहुत बढ़िया कहानी है जिसमें अजय देवगन ने मैदान मार लिया है गजराज राव प्रियामणि के रोल भी दमदार हैं

गजराज राव ने तो फिल्म में इतना बढ़िया किरदार निभाया है कि आपको उनके किरदार से नफरत भी हो सकती है जबकि अपना भाई अभिलाष थपलियाल कमेंटेटर के रूप में इतना बढ़िया है कि आपको उससे मोहब्बत हो जाएगी

 

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