desh ka pahala chulav kaise huva janiye
देश का पहला चुनाव कैसे हुवा ?
1951 – 52 में हुए देश के पहले आम चुनाव कई माइनों में खास थे आजादी के बाद पहली बार देश में जनता की चुनी हुई सरकार बनाई जानी थी लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के भी इलेक्शन कराए जाने थे 1949 में चुनाव आयोग का गठन हुआ सुकुमार सेन देश के पहले चुनाव आयुक्त बनाए गए सेन के कंधों पर देश के 17 करोड़ 32 लाख से ज्यादा वोटर्स के मतदान की जिम्मेदारी थी इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर देश में मतदान नहीं कराया गया था
लिहाजा चुनाव आयोग को मतदान की तैयारियों में काफी मशक्कत करनी पड़ी देश भर के 132560 मतदान केंद्रों पर 196084 बूथों पर मतदान होना था इतनी संख्या में मतदान केंद्रों पर मतपे कियां और वह भी अलग-अलग राजनीतिक दलों के लिए अलग-अलग रंगों की चाहिए थी चूंकि उस वक्त देश में साक्षरता प्रतिशत बहुत कम था इसलिए चुनाव चिन्ह देखकर वोटरों को अपना वोट बैलेट बॉक्स में डालना था बैलेट पेपर जमा कराने के लिए जिन मतपेटीयों की जरूरत थी उनका डिजाइन तय करना काफी पेचीदा काम था
चुनाव आयोग ने बैलेट बॉक्स के मानक काफी विचार विमर्श के बाद तय किए थे मतपेटीयों में लॉकिंग सिस्टम बैलेट पेपर डालने के लिए जगह और बैलेट बॉक्स की संख्या से जुड़े फैसले काफी सोच समझ कर लिए गए थे जैसे चुनाव आयोग ने यह मानक तय किया था कि मत पेटी 20 गेज लोहे की चद्दर से बनी होनी चाहिए जब चुनाव आयोग ने मत पेटियां के सब मानक तय कर दिए तो मतपेटीयों की आपूर्ति के लिए टेंडर जारी किए गए
देश की कई स्टील कंपनियां इसमें शामिल हुई इसमें सबसे प्रमुख कंपनी गोदरेज थी गोदरेज बॉयज मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बॉम्बे ने ₹5 हैदराबाद की एलविन मेटल वर्क्स लिमिटेड ने ₹4 .15 आने बंगो स्टील फर्नीचर लिमिटेड ने ₹4. 6 आने ओरिएंटल मेटल प्रोसेसिंग वर्क लिमिटेड ने ₹4.15 आने उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने करीब 13 विभिन्न उत्पादकों को ₹5 एक आने में ठेका दिया था सबसे महंगा ठेका कलिंग रेफ्रिजरेशन लिमिटेड कटक और ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्क्स का ₹6 से कुछ अधिक में आपूर्ति का था
मद्रास देश का एकमात्र राज्य था जहां लोहे या स्टील की जगह लकड़ी के बैलेट बॉक्स इस्तेमाल किए गए इसकी वजह स्टील के बैलेट बॉक्स की समय पर आपूर्ति ना हो पाना था चूंकि देश में पहले चुनाव के वक्त लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होने थे इसलिए लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए मत पेटियां भी अलग-अलग रंग में करवाई गई ताकि मतदाता को रंग पहचानने में परेशानी ना हो लोकसभा चुनाव की मत पेटियां का रंग हल्का हरा या गहरा हरे की पेटियां थी
देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव के लिए 1 करोड़ 22 लाख 77449 की लागत से 2584 9945 मत पेटियां खरीदी गई पहले आम चुनाव के वक्त देश में मत पेटियां की सर्वाधिक आपूर्ति गदज कंपनी ने की थी गोदरेज ने 1284 369 बैलेट बॉक्स हैदराबाद एलविन मेटल वर्क्स ने 380507 बैलेट बॉक्स बंगो स्टील कटक ने 252 124 बैलेट बॉक्स ओरिएंटल मेटल वर्क्स ने 65000 बैलेट बॉक्स जबकि उत्तर प्रदेश राज्य ने कई कंपनियों से 491850 बैलेट बॉक्स बनवाए थे
मद्रास राज्य में लकड़ी के बने 1 11095 बैलेट बॉक्स खरीदे थे सबसे ज्यादा 544800 बैलेट बॉक्स उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के लिए इस्तेमाल किए गए मद्रास राज्य में 306754 पश्चिम बंगाल में 289170 बिहार में 260390 उपयोग की गई थी शेष अन्य राज्यों में मध्य प्रदेश में 53016 मतपेटीया उपयोग की गई सबसे कम 680 मतपेटीया बिलासपुर में इस्तेमाल की गई 2584000 से ज्यादा मट पेतिया बनाने के लिए भारी मात्रा में स्टील की जरूरत थी
चुनाव आयोग ने इस्पात मंत्रालय से गुजारिश की ताकि स्टील कारखानों को कच्चा माल उपलब्ध कराया जा सके इस तरह पहले चुनाव में तकरीबन 26 लाख मत पेटियां को बनाने के लिए 8165 टन स्टील उपयोग किया गया था इस तरह बैलेट बॉक्सो की संख्या के अलावा अतिरिक्त मट पेतिया भी सुरक्षित रखी गई ताकि जरूरत पड़ने पर उपलब्ध कराई जा सके देश के दूर दराज इलाकों तक मठ पेतिया पहुंचाई गई
हिंद महासागर और अरब सागर के जो द्वीप देश का हिस्सा थे उन तक बैलेट बॉक्स पहुंचाने की जिम्मेदारी नौसेना के जहाजों ने निभाई दुर्गम इलाकों तक पैदल या एयरफोर्स की मदद से मटपतल 25 अक्टूबर 1951 को मतदान प्रक्रिया शुरू हुई जो 21 फरवरी 1952 तक चली पांच महीनों में 68 फेज में पहले आम चुनाव कराए जा सके पहले आम चुनाव में जम्मू-कश्मीर शामिल नहीं था गोवा भी उस वक्त देश का हिस्सा नहीं था
पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने केंद्र समेत कई राज्यों में सरकार बनाई पंडित नेहरू देश के पहले निर्वा प्रधानमंत्री बने इस तरह अगले चार दशकों तक बैलेट बॉक्स की उपयोगिता बनी रही पहले आम चुनाव में बनाई गई लाखों मट पेटियां इन चुनावों में भी इस्तेमाल की गई साल 2000 में मान्यता मिलने के बाद वोटिंग के लिए ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हो गया इसके बाद बैलेट बॉक्स की उपयोगिता लगभग खत्म हो चुकी
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