क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform civil code) इसके बारे में अच्छे से जानेंगे ?
दोस्तों 2019 में कश्मीर में धारा 370 हड्डी 224 में राम मंदिर भी बन जाएगा और ऐसा लगता है की 2024 के चुनाव से पहले देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड भी इंप्लीमेंट हो जाएगा एक ऐसा कानून जिसका देश को 75 साल से इंतजार था एक ऐसा कानून जिसके आने के बाद हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई लड़का लड़की सबको बराबर के राइट्स मिल जाएंगे खासकर एक क्षेत्र की लड़कियों और औरतें के साथ हो रही ज्यादती हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी कायदे से यूनिफॉर्म सिविल कोड आने की खुशी में सबको खुश होना चाहिए
था नाच नाच कर अपने घुंघरू तोड़ लेने चाहिए थे मगर घुंघरू तोड़ना तो दूर इसकी सुखाहट होते ही एक वर्ग ने अपनी चूड़ियां तोड़ ली वो ऐसे तड़प रहा है मानो किसी ने उसे गरम तवे पर बिठा दिया हो वो ऐसे तड़प रहा है मानो दूध बोलकर किसी ने फिनायल पीला दी हो वो ऐसे चिल्ला रहा है जैसे पालक की सब्जी बोलकर किसी ने उसे दी वाली मेहंदी मिला दी हो तो क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और उसके आने के बाद क्या-क्या बादल जाएगा और क्यों कुछ लोग उसके आने की बात सुनकर गम पॉपकॉर्न की तरह फुदकने लगे हैं
कानून कितने तरह के होते हैं क्या है ?
तो दोस्तों क्या है और इतने वक्त से उसकी डिमांड क्यों की जा रही थी इससे पहले की मैं इस बात पर आऊं मैं आपको थोड़ा पीछे लिए चलता हूं दोस्तों मोटे तोर पर तीन तरह के कानून होते हैं एक होता है क्रिमिनल लॉव दूसरा कमर्शियल लॉव तीसरा सिविल लॉव अब बात ये है की जब अंग्रेज भारत पर राज करते थे तो मोटे तोर पर उनकी दो ही चीजों में दिलचस्प थी पहले की वो भारत को कैसे ज्यादा से ज्यादा लूटे
इसलिए उन्होंने उसी हिसाब से कमर्शियल लॉव बनाए और उसे सबके लिए एक जैसे रखा उन्होंने क्रिमिनल लॉव भी सबके लिए एक जैसा रखा है मगर उनको इस बात में कोई इंट्रेस्ट नहीं था की मॉडर्न टाइम के हिसाब से सिविल लॉव कैसा हो औरतो की स्थिति कैसी हो उन्हें कैसे हक मिले उसमें कोई यूनीफामिटी है या नहीं उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया मगर आजादी के बाद जब इंडिया का कॉन्स्टिट्यूशन बना तो हिंदू सिख बुद्धिस्ट और जैन के लिए तो लॉव तो आ गया
मगर उस वक्त की सरकार ने मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया एक तरह से शादी तलाक उत्तराधिकार के मामले उन्हें खुद अपने मजहब के हिसाब से तैय करने का हक दे दिया गया जीस पर उसी वक्त कांग्रेस के बड़े नेता जी कृपलानी जी नेहरू जी से काफी नाराज हुए उन्होंने तो नेहरू जी के फैसले को शाम प्रदायिक तक कह दिया उन्होंने कहा ऐसा लगता है की नेहरू सरकार मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सुधारना ही नहीं चाहती
उन्होंने उसी वक्त आम सिविल कोड लाने की बात की जब बीजेपी का जन्म तक नहीं हुआ था मगर इन सब बातो का उस वक्त की सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा फिर शबानों के कैसे हुआ तब भी सुप्रीम कोर्ट ने पर्सनल डॉ के खिलाफ जाकर एक फैसला लिया मगर अगेन राजीव गांधी जी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसला को ही पलट दिया
यूनिफॉर्म सिविल कोड आया तो इससे क्या फर्क पड़ेगा इसका सबसे ज्यादा फायदा किसको होगा
इस मामले पर राजनीति होती रही मगर इस बीच लगातार अदालत भी सरकार को कह रही थी की आप लोग ना आम सिविल कोर्ट लो फिर धीरे-धीरे देश की राजनीति में बीजेपी का उदय हुआ है बीजेपी ने कश्मीर से धारा 370 हटाने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के अलावा इस मुद्दे को भी अपना कोर मुद्दा बनाया और अब ऐसा लगता है की इतने सालों बाद आखिरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड आ ही जाएगा अब आते हैं इस बात पे की यूनिफॉर्म सिविल कोड आया तो इससे क्या फर्क पड़ेगा
दोस्तों जब भी आम सिविल कोड लागू होने की बात होती है तो बहुत सारे लोग ये हल्ला करते हैं जैसे ये मुसलमान के खिलाफ है उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश है उनसे उनकी पहचान चीन का कोई षड्यंत्र है जबकि हकीकत ये है की अगर ये आता है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम महिलाओं और बचियो को ही होगा हिंदू महिलाओं को तो आज भी बहुत सारे हक मौजूदा कानून से मिले ही हुए हैं मगर कौमन सिविल कोर्ट आया तो उससे मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी पुरी तरह बादल जाएगी इसके आने के बाद सभी की शादी की एक उम्र तय कर दी जाएगी
लड़के लड़कियों सभी की फिर किसी भी धर्म का शख्स उसे उम्र से पहले बच्चे की शादी नहीं कर पाएगा इसके पीछे सोच ए है की लड़कों के साथ लड़कियां भी कम से कम ग्रेजुएशन तो कर ही लें| इंस्टेंट ट्रिपल तलाक भले ही खत्म कर दिया हो मगर ये भी सच है की अभी भी ऐसे कई तरीके हैं जिसे मुस्लिम महिलाओं को तलाक दे दिया जाता है और वो कुछ नहीं कर पाती मगर यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट के आने के बाद तलाक लेने का प्रोसेस सभी के लिए एक जैसा हो जाएगा और हर किसी को उसे मानना ही होगा
कौमन सिविल लागू होने के बाद ?
कौमन सिविल लागू होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद अपने सोहर से गुजारा बट्टा पाने का हक मिल जाएगा नए कानून के बाद मुस्लिम महिला भी बच्चा अडॉप्ट कर पाएंगे जो की मुस्लिम पर्सनल डॉ में मुस्लिम महिलाओं को बच्चा डॉग करने का हक नहीं था बाकियों की तरह मुस्लिम मर्द भी एक से ज्यादा शादी नहीं कर पाएंगे यहां तक की बेटे की तरह बेटियों को भी मां-बाप की संपत्ति में प्रॉपर्टी में बराबर का हक मिलने लगेगा अब आप ही बताएं किसी एक कानून से या कौमन सिविल कोर्ट से एक वर्ग की इतनी महिलाओं को उनके हक मिले उन्हें बराबर का दर्ज मिले खुद पर हो रहे जुल्म से उन्हें मुक्ति मिले तो इसे वेलकम करना चाहिए या इसे कॉम के खिलाफ साजिश बता कर उसपे चिल्लाना शुरू कर देना चाहिए
मगर जो भी लोग इसका विरोध करते हैं उनके पास विरोध करने की कोई जायज बजे नहीं है कोई सॉलिड आर्गुमेंट नहीं है उनका बस इतना कहना है की जो भी चीज शरीयत के हिसाब से उसमें बदलाव नहीं होना चाहिए वो इस बात पर आर्गिव करने को तैयार ही नहीं होते की क्या आधुनिक समाज में वक्त के साथ बदलाव होना चाहिए या नहीं वो इस पर भी कुछ नहीं का पाते की जब इतने सारे मुस्लिम देश आधुनिक समाज के तोर तारिको पर बराबरी के आधार पर कानून बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं मगर इन्हीं लोगों की तब बोलती बंद हो जाति है जब इसे पूछा जाता है की अगर आपको कौमन लॉव से इतनी परेशानी है तो फिर आप अपने लिए क्रिमिनल लॉव भी शरीयत के हिसाब से रख लो
दिल्ली हाई कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट लाने की बात पर क्या कहा
जहां चोरी करने पर हाथ काट दिए जाते हैं शराब पीने पर कोड़े मारे जाते हैं बाकी अपराधों पर पत्थर तक मारे जाते हैं अगर सच में आपको उस कानून की इतनी परवाह है तो अपने लोगों के लिए ये कानून भी मागो मगर उसे पर कोई कुछ नहीं बोलना लेकिन जहां औरतें के हक की बात आती है उनकी बराबरी की बात आती है वहां एक वर्ग किसी भी तरह के बदलाव के एकदम खिलाफ हो जाता है इससे ऐसा लगता है की आपको अपने लिए तो बराबरी और सुविधा चाहिए मगर महिलाओं के लिए नहीं और ऐसा नहीं की ये कोई बीजेपी का ही चुनावी मुद्दा है तकरीबन एक दर्जन मौके पर हाय कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक अलग-अलग सरकारो से कह चुके हैं की वो जल्द से जल्द यूनिफॉर्म सिविल कोड लाए
2017 में सायरा बानो के केस में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है की जल्द से जल्द सामान्य अचार संहिता लागू की जाए इसी तरह 2021 के एक मामले में तो हिंदू कपल के तलाक पर दिल्ली हाय कोर्ट ने आम सिविल कोर्ट लाने की बात की थी इस मामले में मीणा जाति का एक लड़का हिंदू मैरिज एक्ट के तहत अपनी पत्नी से तलाक चाहता था मगर उसकी पत्नी का कहना था की मीणा जाति पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता इसलिए वो तलाक नहीं देगी इस मामले में अदालत ने भी माना की पति-पत्नी दोनों अपनी जगह ठीक है मगर साथ ही अदालत ने ये भी कहा की आज का हिंदुस्तान धर्म और जाति के बंधन से ऊपर उठ चुका है आज के युवाओं को शादी और तलाक में किसी तरह की दिक्कत ना आए इसलिए आम सिविल कोड लाया जाए
मगर कुछ लोग अदालत की ऐसी सीरीयस टिप्पणियों को भी नहीं मानते ना उनके लिए अदालत की कोई ऐसी बात मायने रखती है ना पिछड़ा कानून की वजह से बच्ची और महिलाओं को हो रही दिक्कतें उनके लिए इंपॉर्टेंट है वो सब ऐसे किसी भी कानून का ये कह कर विरोध करने लगता हैं की बीजेपी का इसके पीछे सांप्रदायिक एजेंडा है
बताइए हैरानी यह है की जो लोग समाज कानून को सांप्रदायिक बताते हैं यह वही लोग हैं जो हर बात पर सरकार को संविधान का सम्मान करने की सिख देते हैं यह वही लोग हैं जो हर वक्त इस बात की दुहाई देते हैं की भारत एक सेकुलर देश है यहां हर कोई बराबर है कोई उच्च नीच नहीं होनी चाहिए मगर सरकार जब सच में यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरीऐ ऐसा कानून लाने की कोशिश कर रही है जो हर तरह का भेदभाव खत्म कर देगा तो यही लोग सबसे ज्यादा चिल्ला रहे हैं यह लोग चाहते कया हैं
कुछ लोगों को खुश करने के लिए देश आज भी 150 साल पुराने वक्त में जीता रहे क्या आज की सरकार भी वैसा ही बरताव करने लगे जैसे शबानों के केस में पुरानी सरकार ने किया था जब सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉव के विरुद्ध जाकर शाहबानो के पति को तलाक के बाद उसे गुजारा भट्टा देने को कहा था मगर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सरकार पर इतना दबाव बनाया की उसे टाइम सरकार ने कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसला को ही पलट दिया और कहा की अगर कोई भी शख्स मुस्लिम रीति रिवाज से शादी करता है तो उसकी कोई मजबूरी नहीं होगी की वो तलाक के बाद अपनी बीबी को गुजारा भट्टा दे
राजीव सरकार की उसे एक फैसला ने भारत की सियासत को हमेशा के लिए बादल दिया अब आप ही बताइए क्या ये देश एक बार फिर से इस तरह की तुष्टिकरण की राजनीति में घुसाना चाहिए या फिर बदलाव के मोहने पर हम हैं उसे एक्सेप्ट करना चाहिए इतिहास से सबक लेते हुए हमको आगे बढ़ाना चाहिए बताइए मैं पूछता हूं ऐसा कैसे हो सकता है की एक देश यूं तो हर मामले में मॉडर्न हो गया है हम कहें की भैया नहीं नहीं मैं तो आज कार से ट्रैवल करूंगा क्योंकि इससे वक्त बचत है मैं ए सी भी उपयोग करूंगा क्योंकि मुझे गर्मी नहीं लगती मैं कबूतर की कोंच में चिट्ठी डालकर भेजना की बजाए मोबाइल पर वीडियो काल भी करूंगा मगर जब मजहवि बात आएगी तो मुझे तकलीफ हो जाएगी
अपनी राय आप के लिए
बताइए मैं उसे हरगिज़ नहीं बदलूंगा फिर चाहे कोई कुछ भी कह ले दोस्तों आखिर में इतना ही कहूंगा की कोई भी मॉडर्न समाज ऐसे नहीं चला कोई भी सोसाइटी जहां अलग अलग फ़ेता और कलर के लोग रहते हैं उन्हें इंसाफ और बराबरी की बेसिक बातो पर एक जैसा होना ही पड़ता है किसी भी आधुनिक समाज का यह फर्ज है की किसी भी वर्ग के साथ कोई ज्याति ना होने पे हर किसी के साथ बराबरी का सुलूक किया जाए अब ऐसा तो हो नहीं सकता ना की आप देश से तो यह चाहे की वो आपके साथ बराबरी का सलूक करें
मगर जब आपके ही लोगों को बराबरी देने की बारी है तो आप अडंगा अडां दो और कहो की मुझेसे दूर रहो ये मेरा निजी मसाला है अगर हमें सच में एक सेकुलर मॉडर्न और बराबरी वाला समाज बनाना है और बनना है तो हमें जरूरी बदलाव करनी ही होंगे अच्छा होगा की ये बदलाव सब की राय हमारी से हो सबसे डिस्कस करके हो एक अच्छे माहौल में हो और ये समझते हुए हो की इसके पीछे किसी की कोई गलत नियत नहीं है अगर ये अप्रोच रखेंगे तो चीज बदलने में देर नहीं लगेगी