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सड़क पर नमाज पढ़ते लोगों को लात मारते हुए एक पुलिस वाले का वीडियो वायरल हो गया पूरा सच क्या है जानते है ?

दोस्तों 8 मार्च को दिल्ली के इंद्रलोक एरिया में सड़क पर नमाज पढ़ते लोगों को लात मारते हुए एक पुलिस वाले का वीडियो वायरल हो गया वीडियो वायरल होने के बाद दिल्ली पुलिस ने घटना की जिम्मेदार सब इंस्पेक्टर को और पुलिस पोस्ट इंचार्ज को फौरन सस्पेंड कर दिया जब से घटना का वीडियो सामने आया है पूरे सोशल मीडिया पर इस पर जबरदस्त डिबेट चल रही है एक तरफ ऐसे लोग हैं जो पुलिस वाले के सस्पेंशन को ठीक बता रहे हैं वहीं एक सेक्शन ऐसा भी है जो पुलिस वाले को यह कहकर डिफेंड कर रहा है कि पुलिस वाले ने तो पहले अपने लेवल पर इन लोगों को वहां से हटाने की कोशिश की थी

और जैसा कि आप इन विजुअल्स में देख भी रहे हैं कि ये पुलिस वाला सड़क पर कपड़ा बिछाकर नमाज अदा करने वाले नमाजियों को हटाने की कोशिश कर रहे हैं और जब वो नहीं हटे तो उसने नमाज पढ़ रहे एक आदमी को लात मार दी इस पूरे इंसीडेंस के बाद से बड़ी तीखी बहस छिड़ गई है एक तरफ लोग कह रहे हैं कि माना कि पुलिस वाले का लोगों को यूं मारना जायज नहीं था मगर क्या यूं बीत सड़क पर नमाज पढ़कर वहां आने जाने वाले लोगों के लिए मुसीबत खड़ी करना जायज है लोग ये भी सवाल कर रहे हैं कि अगर सड़क पर नमाज पढ़ने वालों से ऐसी सख्ती से निपटा जा रहा है

तो फिर पुलिस ऐसी सख्ती उन लोगों के साथ क्यों नहीं करती जो बीच सड़क पे टेंट लगाकर जगराता करने लगते हैं अगर सड़क का इस्तेमाल नमाज के लिए नहीं होना चाहिए तो फिर सावन के महीने में इसी सड़क पर कावड़ियों के लिए विशेष इंतजाम क्यों किए जाते हैं तो हम इसी सेंसिटिव और जरूरी टॉपिक के एक-एक पहलू पर बात करेंगे और साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि सड़क पर नमाज करने को लेकर बाकी दुनिया में क्या नियम कानून है

 

 

 

 

सड़क पर नमाज करने को लेकर बाकी दुनिया में क्या नियम कानून है

पिछले कुछ सालों में सड़क पर नमाज पढ़ने को लेकर काफी कंट्रोवर्सीज हुई हैं 2018 में हरियाणा के गुरुग्राम में खुले में नमाज पढ़ने को लेकर काफी दिनों तक विवाद चल रहा था विवाद से पहले टोटल 108 जगहों पर खुले में नमाज पढ़ी जाती थी अब ये जगह कम होकर 20 रह गई है यूपी में तो खुले में नमाज पढ़ने को लेकर सबसे ज्यादा सख्ती है

यहां कई मौकों पर ऐसा करने वालों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज की गई है 8 मार्च को दिल्ली के इंद्रलोक इलाके में भी ऐसा ही हुआ कुछ लोग सड़क के किनारे नमाज पढ़ रहे थे इतने में पुलिस वाले आते हैं उन लोगों को हटने के लिए कहते हैं और इस बीच एक पुलिस वाला किसी नमाजी पर लात मार देता है खुले में नमाज पढ़ना सही है या नहीं है इस पर तो हम बाद में आएंगे लेकिन उससे पहले हम यह क्लियर कर दें कि सस्पेंडेड पुलिस वाले ने जिस तरह इस मामले को हैंडल किया वो बिल्कुल भी सही नहीं था

 

 

अगर कुछ लोग नमाज पढ़ने के लिए बैठ ही गए हैं और नमाज अदा कर रहे हैं तो पुलिस वालों को उस वक्त रुक जाना चाहिए था आखिर वो लोग वहां कोई क्राइम तो कर नहीं रहे थे कि उन्हें बीच में ही रोकना जरूरी था एक बार जब वो नमाज पढ़ लेते तब उन्हें समझाया जा सकता था कि आपको बीच सड़क पे ये नहीं पड़नी चाहिए इससे ट्रैफिक पर बुरा असर पड़ता है और यह भी कहा जा सकता ता था कि अगर दोबारा ऐसा करेंगे तो लीगल एक्शन लिया जाएगा हमें ये समझना चाहिए दोस्तों कि जो स्टेट होती है ना वो मां-बाप की तरह होती है और जो नागरिक होते हैं वो बच्चों की तरह होते हैं अगर बच्चे गलती भी करें तो मां-बाप को यह नहीं भूलना चाहिए कि वो हैं

तो उनकी औलाद ही बीच नमाज में अगर आप किसी को लात मार के उठाएंगे तो इससे यही मैसेज जाएगा कि स्टेट यानी पुलिस अपनी ताकत का मिसयूज कर रही है इसलिए सस्पेंडेड पुलिस वाले ने जो किया उसे कहीं से भी जस्टिफाई नहीं किया जा सकता

 

 

दूसरी बात क्या सड़क पर नमाज अदा करनी चाहिए

अब आते हैं दूसरी बात पर जिस पर हमेशा से डिबेट चलती है वो यह कि क्या सड़क पर नमाज अदा करनी चाहिए जो लोग सड़क पर नमाज पढ़ने की वकालत करते हैं उनका आर्गुमेंट यह है कि जिस तादाद में मुस्लिम आबादी बड़ी है उसके हिसाब से मस्जिदें नहीं बड़ी हैं जुमे पर मस्जिदें फुल हो जाती हैं

और कई बार नजदीकी मस्जिद बहुत दूर होती है इसलिए उन्हें सड़क पर नमाज पढ़नी पड़ती है और वो ऐसा हर रोज तो नहीं करते सिर्फ जुम्मे पर करते हैं वहीं जो लोग सड़क पर नमाज का विरोध करते हैं उनका कहना है कि ये सारी बातें बहानेबाजी हैं कुछ लोग तो इंद्रलोक वाली घटना पर भी कहते हैं कि जहां लोग सड़क पर नमाज पढ़ रहे हैं उसके बगल में ही मस्जिद थी उस इलाके में छह मस्जिदें और हैं ऐसे में ये लोग सड़क पर नमाज अदा क्यों कर रहे हैं ये लोग आंकड़े गिनाते हुए कहते हैं कि देश में तकरीबन 6 लाख मस्जिदें हैं मुसलमानों के 3 लाख प्रेयर हॉल्स हैं

और तो और भारत की रेलवे और भारतीय सेना के बाद देश में सबसे ज्यादा जमीन मुस्लिम वक्फ बोर्ड के पास है अगर इन सबके बावजूद कोई ये कहता है कि मस्जिद में तो जगह ही नहीं है या हमारे पास नमाज पढ़ने की जगह नहीं है तो वो झूठ बोल रहा है इन लोगों का कहना है कि खुले में नमाज पढ़ना कुछ और नहीं सिर्फ एक वर्ग का शक्ति प्रदर्शन है अब देखिए ये तो है दोनों साइड के आर्गुमेंट अब हम आते हैं हमारे पॉइंट ऑफ व्यू पर तो भाई एक बात तो हम पहले भी बता चुके हैं कि इंद्रलोक में पुलिस ने मामले को जिस तरीके से हैंडल किया वो बिल्कुल सही नहीं है

लेकिन यह बात भी अपनी जगह बिल्कुल ठीक है कि चाहे कोई भी रीजन हो आप पब्लिक प्लेस और उसमें भी प्रेयर के लिए सड़क के बीचोंबीच नहीं बैठ सकते

 

 

सबसे ताकतवर मुस्लिम देश सऊदी अरब क्या कहा ?

और ऐसा नहीं है कि हम कह रहे हैं खुद सबसे ताकतवर मुस्लिम देश सऊदी अरब में 2017 में दो लोगों की मौत के बाद सड़क किनारे गाड़ी लगाकर नमाज पढ़ने पर 500 दिरहम का जुर्माना लगा दिया ऑर्गेनाइजर की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के 27 मुस्लिम देशों में यूं सड़क पर नमाज पढ़ने पर रोक है फ्रांस में भी 2011 में सड़क किनारे नमाज पढ़ने या कोई विध प्रार्थना करने पर रोक लगा दी गई थी

पिछले साल इटली में इस तरह का कानून लाने की पहल की गई थी अब जितने भी देशों में इस तरह की रोक है उसका मतलब यह नहीं है कि वो किसी धर्म विशेष के खिलाफ है अगर सऊदी अरब जैसा सबसे अमीर और ताकतवर मुस्लिम देश ऐसा कर रहा है तो क्या वोह मुस्लिम विरोधी है ऐसा करने के पीछे हर देश की यही सोच होती है कि अगर लोग सड़क पर प्रार्थना करने लगेंगे तो उससे एक्सीडेंट हो सकते हैं ट्रैफिक प्रभावित होगा और एक बार आपने ऐसी परमिशन दे दी तो फिर लोग कहीं भी ऐसा करने लगेंगे अब क्वेश्चन ये है

कि जब इतने मुस्लिम देश यह बात समझ सकते यूरोप और अमेरिका में रहने वाले मुस्लिम वहां के लॉ का सम्मान करते हुए ऐसा नहीं करते तो फिर भारत में ऐसी मनाही को एक मजहब के खिलाफ साजिश के तौर पर क्यों देखा जाता है

 

 

सोसाइटी का नियम कानून ?

कोई भी सभ्य समाज सिविल सोसाइटी नियम कानून से चलती है ना कि इमोशन से सोसाइटी ठीक से फंक्शन करे इसके लिए कानून बनाने ही पड़ते हैं

इसलिए इस बात में तो कोई डिबेट नहीं है कि सड़क पर नमाज पढ़ने को एक्सेप्टेबल नहीं माना जा सकता लेकिन यहीं से दूसरा सवाल भी निकलता है जो कि बिल्कुल जायज है वो ये कि अगर सड़क पर नमाज पढ़ने से लोगों को रोका जाए तो फिर दूसरे धर्मों को भी सड़क पर किसी तरह के कार्यक्रम की इजाजत क्यों दी जाए आप भले ही किसी भी धर्म के हो खुद से पूछकर देखिए क्या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग रूल हो सकते हैं क्या अगर सड़क पर नमाज नहीं पढ़ सकते तो फिर नवरात्रों के वक्त सड़क पर जगराते की इजाजत भी नहीं मिलनी चाहिए कामण यात्रा के समय सड़क पर टेंट लगा लगाने पर भी सवाल उठेंगे आखिर इन सब से ट्रैफिक पर उतना ही असर पड़ता है जितना नमाज से पड़ता है

मगर दिक्कत यह है कि हमारी सोसाइटी में धर्म को हमने ऐसा टॉपिक बना दिया है कि धर्म या मजहब के नाम पर होने वाले किसी भी कार्यक्रम पर लोग सवाल उठाने से डरते हैं अगर सड़क पर नमाज पढ़ी जा रही है तो पुलिस को ही डर होता है कि अगर रोका गया तो लोग नाराज हो जाएंगे अगर सड़क घेरकर जगराते का पंडाल लगाया गया है तो किसी पुलिस वाले की हिम्मत नहीं है कि वहां जाकर लोगों को हटा दे मगर यकीन मानिए दोस्तों चाहे मुसलमान हो या हिंदू दोनों ही तरफ से ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह चाहते हैं कि में से सड़क पर कुछ भी नहीं होना चाहिए देश सिस्टम से चलना चाहिए कोई भी चीज सिस्टम से ऊपर नहीं होनी चाहिए

 

 

आप कोई भी दलील देकर यह साबित नहीं कर सकते कि मंदिर और मस्जिदों में लाउड स्पीकर क्यों जरूरी है कितने ही मुस्लिम देशों में मंदिर के बाहर लाउड स्पीकर लगाना अलाउड नहीं है मगर आप भारत में ऐसा करके देख लीजिए जरा यूपी में ऐसा हुआ क्योंकि योगी ने ये पाबंदी मंदिर और मस्जिद दोनों के लिए लगाई मगर कितने ही स्टेट ऐसे हैं जहां आज भी मंदिरों और मस्जिदों पर धड़ल्ले से लाउड स्पीकर चल रहे हैं लाउड स्पीकर से सुबह शाम आने वाले इस आवाज से एग्जाम देने वाले बच्चों को तकलीफ होती है और जिन बुजुर्गों की तबीयत खराब होती है वह भी परेशान होते हैं

मगर मजाल है कि कोई इस पर ध्यान दे दे आखिर में एक छोटा सा एग्जांपल देकर मैं दोस्तों जब आप 17-18 साल की उम्र में बाहर पड़ने के लिए पहली बार घर से निकलते हैं फिर दूसरे शहर में जाकर आप किसी के साथ रूम शेयर करते हैं जिसके साथ रूम शेयर करते हैं उसकी प्राइवेसी का उसके कंफर्ट का ख्याल रखते हैं रात के 11:00 बज गए हैं अगर आपको नींद नहीं भी आ रही है लेकिन आपका साथी अगर सोना चाहता है तो आप उसके लिए कमरे की लाइट बंद कर देते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि यह सोने का वक्त है किसी रोज अगर सुबह जल्दी उठ भी गए तो आप ख्याल रखते हैं कि ज्यादा शोर ना करें ताकि साथी की नींद ना खुल जाए

 

 

दोस्तों मैं पूछना चाहता हूं कि जब एक 17-18 साल के बच्चे में इतनी समझ होती है कि किसी के साथ रहो तो कैसे उसकी प्राइवेसी की रिस्पेक्ट करनी है उसकी कंफर्ट का ख्याल रखना है अपनी किसी हरकत से उसे परेशान नहीं करना है तो क्या इतनी समझ उन लोगों में नहीं है जो ईश्वर को याद करने के नाम पर मंदिरों और मस्जिदों के लाउड स्पीकर चलाकर लोगों को दिन रात परेशान करते हैं जो सड़क घेर कर अपनी इबादत के नाम पर पूरा ट्रैफिक जाम कर देते हैं मतलब आपके लिए आपके ईश्वर की प्रार्थना ज्यादा जरूरी है

और और आपकी वजह से हजारों लोगों को हो रही दिक्कतों की कोई वैल्यू नहीं है मैं पूछता हूं क्या एक धार्मिक आदमी एक मजहबी आदमी सच में इतना स्वार्थी इतना सेल्फिश होकर सोचता है क्या क्या किसी का ईश्वर या अल्लाह उससे ये चाहेगा कि मेरी खातिर तुम दूसरे लोगों को परेशान करो बिल्कुल नहीं मैं पूछता हूं जब ये बात इतनी सीधी और सरल है तो फिर इन लोगों को क्यों समझ नहीं आती

 

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